मैं और मेरी तन्हाई,
अक्सर ये बाते करते हैं
ज्यादा सोऊ या कम
गम को पिऊ या आंखे करदू नम
या फिर सबकुछ भुला दू
कुछ तो अच्छा कर लूं
हर रोज भुलाना चाहता हूं
शाम होते -होते फिर याद आती हैं
फिर सोचता हूँ
क्या रखा हैं जीने में,
दर्द भरी हैं सिने में
फिर आंखे नम हो जाती हैं
फिर नामुराद जिंदगी का सजा याद आता हैं
रात गहराती हैं, तारे  टिमटिमाते हैं
उनकी बहोत याद आती हैं
थोड़ा रोता हूँ, थोड़ा बिलखता हूँ
आंखों से दर्द छलकाता हूँ
कई बार सोचते-सोचते 
बिस्तर पे लुढ़क जाता हूँ
फिर वही सुबह 
फिर वही सोच
क्या रखा है जिंदगी में 
ये जीना भी है कोई जीने में 
सुबह कुछ और
शाम कुछ और
थोड़ा गम मिला तो घबरा गए
थोड़ी खुसी मिली तो शर्मा गए
यू तो हमे न थी सोचने की आदत
खुद को तन्हा देखा तो
तरस खा के सोचने लगे।
~दीपक कुमार तिवारी(#dktiwari742)
#dktiwari742 #love #life