क्या याद हैं तुम्हे, वो खामोशी से की गई बात
वो हसीन दिन, वो हमारी पहली मुलाकात
पता हैं  तुम भूल गई होगी लेकिन याद है मुझे 
खामोशी के साथ तेरा बैठना,
नहीं भाता था मुझे
फिर भी कमबख्त मेरा दिल 
देखे जाता था तुम्हे
इश्क़ के उस जालिम शहर में जाने को ,
मेरे दिल का भी पूरा बंदोबस्त हो गया था
आसपास का सबकुछ भूल से गया था मैं
मानो दिल की धड़कने तुम्हारे वस में हो,
बस डर लगता था की कही खो न जाऊ तुममे,
और डर हकीकत में बदलते देर नहीं हुई
मैं सुनते आया था लोग बार बार खफा होते हैं
मोहब्बत में ,
मगर मैं उसके खफा से भी इश्क़ कर रहा था
वो साथ होती थी मेरे तो मानो धड़कने धीमी होने लगती थी ,
एक छुअन से साँसे उलझने लगती थी
और ये सिलसिला चलते रहे फिर किस्से चल पड़े दोने की जिंदगी के,
उसके दूर होने से धड़कने तेज हो जाती थी
जिज्ञासा ऐसी होती थी  कि मानो उस वक़्त को वही रोक दू,
बस मैं और वो बाटे करते रहे,
मगर ये सच हैं जिंदगी में हर रंग से खुद को रंगना पड़ता हैं,
कभी रंगीन तो कभी सफेद में जीना परत हैं
और एहसास हुआ की मोहब्बत में हर किसी को दूरियों के साथ जीना परत हैं।
~दीपक कुमार तिवारी(#dktiwari742)