नया साल
वो साल गया मेरी रंजिस गई,
बतो ही बातो में मेरी मंजिल गई,
साल  भी गया ,सब्र भी गया,
उम्मीद की किरण ढल सा गया।
आंखों से आँशु गिरते रहे, 
रोते रहे बिलखते रहे,
किसे कहू , किसे बताऊ,
यादों में तेरी तरपते रहे।
कोशिस की कोई कसर न रही,
फिर भी कोई असर न हुई,
क्या करूँ, कैसे मनाऊ,
सोचते साल बितती रही।
अंतिम दिन जब साल का आया,
आँखों मे आँशु संग खुसिया लाया,
सोचा कल नया दिन नया साल होगा,
नये साल का कुछ नया सौगात होगा।
पर कौन जानता किसे पता है,
आने वाला कल क्या होगा,
पंख खोल संग उरूँगा नभ में ,
या अंतिम सांस जीवन का होगा।
~दीपक कु0 तिवारी "दीपांजल"
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